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मंदसौर/नीमच - भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा किए गए और एक वैज्ञानिक रिपोर्ट पत्रिका में प्रकाशित व्यापक पारिस्थितिकीय आकलन के अनुसार, राजस्थान राज्य के थार रेगिस्तान में 3000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थापित पवन चक्कियां प्रतिवर्ष अनुमानित 1359 पक्षियों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं और देश के इस क्षेत्र में पक्षियों की मृत्यु दर देश के अन्य भागों की तुलना में काफी अधिक है। यह बात सांसद सुधीर गुप्ता ने प्रश्नकाल के दौरान कही। सांसद गुप्ता ने कहा कि सरकार ने इस क्षेत्र में पवन चक्कियों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले पक्षियों की सूची तैयार की है । इनमें से कई प्रजातियां संकटग्रस्त प्रजातियां हैं और इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं। उन्होने कहा कि इन टर्बाइनों को पक्षियों के लिए अधिक दृश्यमान बनाने और स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियों की मृत्यु को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए उठाए जा रहे है।
प्रश्न के जवाब मंे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तवर्धन सिंह ने बताया कि वन्यजीवों का संरक्षण और प्रबंधन करना प्राथमिक रूप से राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों का उत्तरदायित्व है।
वन्य जीव संरक्षण (अधिनियम 1972) की अनुसूचीयों में सूचीबद्ध पक्षियों सहित वन्यजीवों के संरक्षण का प्रावधान है। सरकार द्वारा देश की पक्षी प्रजातियों सहित वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कई कार्य किए जा रहे है।
जिसमें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत पूरे देश में महत्वपूर्ण वन्यजीव पर्यावासों को शामिल करके संरक्षित क्षेत्र अर्थात् राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व तथा सामुदायिक रिजर्व स्थापित किए गए हैं।
मंत्रालय ने देश में आर्द्रभूमि के बेहतर संरक्षण के लिए आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियमावली, 2017 अधिसूचित की है। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों से प्राप्त वार्षिक प्रचालन योजनाओं के अनुसार, केंद्रीय प्रायोजित स्कीम -वन्य जीव पर्यावास का विकास के तहत वन्य जीवों के संरक्षण और प्रबंधन तथा उनके पर्यावासों के विकास के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती हैं।
गंभीर रूप से संकटापन्न प्रजातियों तथा पर्यावासों के संरक्षण के लिए रिकवरी कार्यक्रमश् के विशिष्ट श्संघटक को वर्तमान केंद्रीय प्रायोजित स्कीम श्वन्यजीव पर्यावास का विकास में शामिल किया गया है, ताकि बस्टर्ड, एडीबल नेस्ट स्विफ्टलेट, निकोबार मेगापोड, जेरडोन्स कूरसर और वल्चर्स सहित 24 अभिजात गंभीर रूप से संकटापन्न प्रजातियों के संबंध में संकेंद्रित संरक्षण कार्रवाई की जा सके। राजस्थान सहित विभिन्न पर्यावासों में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिए संरक्षित प्रजनन ग्रासलैंड का पुर्नरुद्धार और वैज्ञानिक प्रबंधन, अग्नि रोकथाम उपायों, प्रिडेटर प्रूफ फैसिंग की स्थापना और अनुरक्षण और जीआईबी संरक्षण के लिए सामुदायिक सम्मिलन कार्यकलापों जैसे कई उपाय किए गए हैं।
मंत्रालय द्वारा नवंबर 2020 में गिद्ध संरक्षण के लिए कार्य योजना शुरू की गई थी। पूरे भारत में आठ गिद्ध संरक्षण प्रजन्न केन्द्र स्थापित किए गए है। मंत्रालय ने विंड टर्बाइनों के कारण पक्षियों की क्षेत्र-वार मर्त्यता का आकलन करने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया है।